‘मेरा देश जाग जाये, आज़ादी के उस स्वर्ग की ओर’!
भारत का स्वतंत्रता दिवस 2021 / 15 अगस्त / लेख
‘मेरा देश जाग
जाये, आज़ादी के उस स्वर्ग की ओर’!
फादर डॉ. एम. डी. थॉमस
निदेशक, इन्स्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली
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15 अगस्त भारत का स्वतंत्रता दिवस है। इस दिन भारत को अंग्रेज़ों की शासन से राजनीतिक आज़ादी मिली थी। कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह भारत का सबसे बड़ा त्योहार है। इसे ‘जश्न-ए-आज़ादी’ के तौर पर मनाया जाता है। इस साल आज़ादी के 74 साल की सालगिरह है और आनेवाला 75वाँ साल ‘अमृत महोत्सव’ के रूप में साल भर मनाया जा रहा है।
आज़ादी की आगाज़ करते हुए भारत के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त को मध्य रात्रि की ओर संसद की संविधान सभा में ‘ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी’ भाषण दिया था। साथ ही, 15 अगस्त को आपने दिल्ली के लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर भारत का ध्वज फहराया था। तब से लेकर, इस दिन देश के प्रधान मंत्री लाल किला की प्राचीर से ध्वजारोहण कर देश को संबोधित किया करते हैं।
साथ ही, देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्वसंध्या पर राष्ट्र के नाम संबोधन करते हैं। अगले दिन सुबह दिल्ली के लाल किले पर प्रधान मंत्री द्वारा तिरंगा झंडा फहराया जाता है। 21 तोपों की सलामी भी दी जाती है। देश के नाम प्रधान मंत्री के संबोधन के बाद विद्यालयीन छात्रों तथा राष्ट्रीय केडेट कोर के द्वारा राष्ट्रगान गाया जाता है। राष्ट्रीय राजधानी और शासकीय भवनों पर बिजली की रंग-बिरंगी सज्जा इन दिनों की खासियत भी है।
देश के सभी राज्यों की राजधानी में भी मुख्यमंत्री द्वारा ध्वजारोहण, राष्ट्रध्वज की सलामी और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। साथ ही, जिला, नगर, पंचायत, गाँव, मुहल्ला, आदि स्तरों पर भी इसी प्रकार औपचारिक कार्यक्रम होते हैं। शासकीय भवन, निजी संस्थाएँ, शैक्षिक संस्थाएँ, आवासीय संघ, आदि में भी झंडा-वंदन का कार्यक्रम होता है। इस अवसर पर पतंग उड़ाना भी आज़ादी को मनाने का एक लोकप्रिय तरीका रहा है।
इतना ही नहीं, देशभक्ति के गीत हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में दूरदर्शन और आकाशवाणी के चैनलों पर प्रसारित होते हैं। चौराहों व बाज़ारों पर देशभक्ति के गाने बजाये जाना, चारों ओर राष्ट्रीय ध्वज दिखायी देना, सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रतियोगिताएँ आयोजित होना, आदि भी इस दिन की रौनक में शुमार हैं। प्रवासी भारतीय भी अपने-अपने तरीके से इस दिन को मनाते हैं। अमेरिका के कुछ शहरों में इस दिन मनाये जाने वाला ‘भारत दिवस’ इसका उदाहरण है।
ज़ाहिर-सी बात है कि महात्मा गाँधी की अगुवाई में भारत की आज़ादी की लड़ाई हुई थी। असहयोग और अहिंसात्मक विरोध उनके औज़ार रहे। जाति, वर्ग, धर्म, आदि का फर्क किये बगैर लोगों को अपने साथ जोड़ सके, यह उनकी खूबी थी। अंग्रेज़ी शासन काल में भारत का काफी विकास हुआ था, इस में कोई शक नहीं है। भारतीय राष्ट्रीय कॉग्रेस की स्थापना भी उनके समय पर हुई थी। स्वदेशी, पूर्ण स्वराज, सत्याग्रह, आदि महात्मा के आदर्शों पर अमल करना अब बाकी है।
जवाहर लाल नेहरू के ‘ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी’ भाषण बहुत ही मार्मिक रहा। कहा जाता है कि 20वीं सदी के सबसे अच्छे भाषणों में इस भाषण की गिनती है। ‘आज़ादी के साथ भारत ने एक नये युग में कदम रखा है। देश की आत्मा आज़ाद हुई है। हर आँख से आँसू मिटाना, पीडि़तों की सेवा करना, मज़दूरों के लिए अवसर देना, गरीबी मिटाना, खुली और वैज्ञानिक सोच को बढ़ाना, देश को लोकतांत्रिक और प्रगतिशील बनाना’, आदि बातें पहले प्रधान मंत्री के रूप में उनकी समझ, सपने और योजनाओं की पहचान थीं। लेकिन, ये योजनाएँ अपने मुकाम पर पहुँच गयी हों, ऐसा तो कतई नहीं है।
‘अमीर और गरीब की आज़ादी ज्यादा और कम है’, इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक अहम् फैसला सुनाया है, जो कि गौर करने लायक है। ‘‘गरीब व्यक्ति की आज़ादी अमीर व्यक्ति की आज़ादी से कमतर नहीं है’’। मतलब है, आज़ादी इन्सान की है, नागरिक की है, उसका अमीरी या गरीबी से कोई लेना-देना नहीं है। कायदे से, अमीर की जितनी आज़ादी है, ठीक उतनी ही आज़ादी गरीब की भी है।
लेकिन, सरसरी निगाह से ही इस बात का पता चलता है कि इस मामले में करीब 75 सालों से आज़ाद भारत की हकीकत उपर्युक्त आदर्श से कोसों दूर है। समाजसेवी अन्ना हज़ारे की बात यहाँ सार्थक लगती है, ‘‘सत्ता से पैसा और पैसे से सत्ता’’। पैसे के बलबूते सच्चाई तक को भी खरीदा या छिपा जाता है। ताकत के बल पर हकीकत को भी तोड़ा-मरोड़ा जाता है या नयी हकीकत को टेस्ट ट्यूब में पैदा किया भी जाता है। लगता है, आज़ादी के पहले से कहीं ज्यादा, आज गरीब और कमज़ोर की आज़ादी के साथ बेरहम खेला जाता है।
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने जाति, रंग, पैसे, ओहदा, आदि को लेकर दबे हुए, दलित तथा हाशिये की ओर सरकाये हुए आज़ाद भारत के बदकिस्मत इन्सानों के लिए एक ज़बर्दस्त मुहिम चलायी थी। वह है ‘हरिजन’, याने ‘ईश्वर के लोग’। इन्सान के लायक इज़्ज़त से वंचित उन बहनों व भाइयों को इज़्ज़त देने के लिए माहात्मा की एक विनम्र कोशिश थी वह। क्या वह मुहिम कारगर हुई है? अहिंसा, सत्याग्रह, स्वदेशी, स्वशासन, सर्वोदय, आदि उनके सपने कितनी फीसदी साकार हुए हैं?
15 अगस्त को भारत के ‘हम लोग’ क्या मनायेंगे? उँची-उँची मूर्तियों को, बनते जा रहे नये संसद भवन या विधान सभाओं को, बुलेट ट्रेन या दुनिया के सबसे बड़े मॉलों को, सबसे महंगी कारों को या सबसे आधुनिक मोबाइल फोनों को? हमारे भारत के सभी नागरिकों को ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ के साथ-साथ ‘साक्षरता, शिक्षा, स्वास्थ्य, साफ पेय जल और स्वच्छ वारावरण’ कब मुहैया होगा? भारत के सभी नागरिकों को बाहरी विकास के साथ-साथ व्यक्ति-व्यक्ति व समुदाय-समुदाय को सांप्रदायिक सदभाव, सर्व धर्म सरोकार, सामाजिक समरसता, राष्ट्रीय एकता और आपसी शांति का माहौल कब हासिल होगा?
आज़ादी के ‘अमृत महोत्सव के दहलीज पर खड़े हम भारतवासियों को ‘संविधान’ के मूल्यों से अपने दिशाबोध को दुरुस्त करना होगा। हर नागरिक के लिए आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, स्वास्थ्य तथा निजता-संबंधी और मानवीय गरिमा की ‘आज़ादी’ को सुनिश्चित किया जाना होगा। बेशक, विविध स्तरों पर विराजमान माननीयों के साथ-साथ हम नागरिकों को आज़ादी की इस मुहिम को चलाने के लिए जावाबदार बनना होगा।
जिस प्रकार शरीर के सभी अंग एक साथ मिलकर रहते, काम करते और विकास करते हैं, हम भारतवासियों को ‘मिल-जुल कर रहने और चलने’ की ‘साझी संस्कृति’ को जीते हुए आगे बढऩा होगा। छोटे-बड़े सभी समुदाय आपसी विश्वास में बँध जायें, मिल-जुल कर एक साथ रहें और साझे तौर पर विकास करें, तभी भारत असल में विकास करेगा। ‘विविधता में एकता’ और ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना, बस, इसी राह में सार्थक होगी। बेशक, भारत का उज्ज्वल भविष्य भी इसी दिशा में छिपी हुई है।
‘जश्न-ए-आज़ादी’ के पुनीत अवसर पर भारत के हम नागरिकों को अपने देश को पूरी तरह से और असल में आज़ाद करने की ओर चलते रहने की ओर प्रतिबद्ध होना होगा। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की प्रार्थना ‘‘सब को सन्मति दे भगवान’’ से हम लोगों को ‘री-स्टार्ट’ होना होगा। साथ ही, नोबेल पुरस्कार विजेता, बहु-आयामी प्रतिभा, दिग्गज और यशस्वी रबींद्र नाथ टैगोर की प्रार्थना ‘आज़ादी के उस स्वर्ग की ओर, हे पिता, मेरा देश जाग जाये’ से ऊर्जा पाकर हम लोगों को ‘रिफ्रेश’ होना होगा। मंजिल पर पहुँचने तक हम लोगों को चलते रहना होगा। भारत की जय! तिरंगे की जय! आज़ादी की जय!
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लेखक इंस्टिट्यूट ऑफ हार्मनि एण्ड पीस स्टडीज़, नयी दिल्ली, के संस्थापक निदेशक हैं। आप कुछ 40 वर्षों से सर्व धर्म सरोकार, राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समन्वय को बढ़ाने की दिशा में प्रतिबद्ध हैं। आप किताब, लेख, व्याख्यान, वीडियो संदेश, संगोष्ठी, सामाजिक चर्चा, आदि के ज़रिये उपर्युक्त मिशन में लगे हैं।
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